3 माह की थिएटर प्रोडक्शन कार्यशाला – छठवां दिन रहा लोक-संस्कृति, ध्यान और अभिव्यक्ति का संगम

3 माह की थिएटर प्रोडक्शन कार्यशाला – छठवां दिन रहा लोक-संस्कृति, ध्यान और अभिव्यक्ति का संगम

Aug 9, 2025 - 07:42
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3 माह की थिएटर प्रोडक्शन कार्यशाला – छठवां दिन रहा लोक-संस्कृति, ध्यान और अभिव्यक्ति का संगम

रायपुर। गोल्डन फ्रेम एकेडमी ऑफ फिल्म आर्ट्स द्वारा आयोजित 90 दिनों की थिएटर प्रोडक्शन कार्यशाला का छठा दिन विविध रंगों से भरपूर रहा, जहां शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ लोक-संस्कृति की भी गूंज सुनाई दी।

दिन की शुरुआत ‘शवासन’ से हुई, जहां प्रतिभागियों ने अपनी आंखें बंद कर तन-मन को विश्राम दिया। शवासन के माध्यम से तनाव, चिंता और मानसिक थकान को दूर करने का अभ्यास किया गया, जिससे प्रतिभागियों को आंतरिक शांति और सकारात्मकता का अनुभव हुआ।

इसके बाद योग सत्र में स्ट्रेचिंग, प्रणाम और सूर्य नमस्कार का अभ्यास कराया गया, जिससे प्रतिभागियों के शरीर में लचीलापन और ऊर्जा का संचार हुआ।

गोल्डन फ्रेम एकेडेमी ऑफ़ फिल्म आर्ट की डायरेक्टर सुश्री पल्लवी शिल्पी ने बताया कि नृत्य सत्र में प्रतिभागियों ने न केवल शारीरिक तालमेल सीखा, बल्कि भावों को शब्दों के बिना व्यक्त करने की कला भी सीखी। “हमारे पारा” गीत पर छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य का अभ्यास कार्यशाला का विशेष आकर्षण रहा, जिसने स्थानीय संस्कृति की जीवंतता को मंच पर उतारा।

संगीत सत्र में बेसिक सरगम के साथ-साथ स्वर की ऊँच-नीच को परिस्थिति के अनुसार नियंत्रित करने की तकनीकें सिखाई गईं। इस दौरान प्रतिभागियों को छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की विविधता, लोक परंपराओं और कहानियों से जुड़ी संगीतमयी जानकारी लोकगायक एवं निर्देशक राकेश तिवारी जी से प्राप्त हुई। उनके निर्देशन में लोकगीतों के शाब्दिक सौंदर्य, गूढ़ अर्थ और सांस्कृतिक महत्व को समझा गया, जिससे छात्रों को छत्तीसगढ़ की समृद्ध परंपरा से सीधा जुड़ाव महसूस हुआ।

स्क्रिप्ट रीडिंग सत्र में नाट्यपाठ की तकनीक, उच्चारण, गति और भाव की समझ के साथ-साथ अभिनय के तकनीकी पक्षों पर भी गहराई से चर्चा की गई। समूह में पढ़ने से कलाकारों ने एक-दूसरे की एनर्जी और टाइमिंग को महसूस किया, जिससे समूह अभिनय की समरसता में सुधार आया।

छठे दिन की गतिविधियों ने यह सिद्ध कर दिया कि एक अभिनेता के व्यक्तित्व निर्माण में ध्यान, लोककला, अभिव्यक्ति और अनुशासन की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। कार्यशाला का हर दिन न सिर्फ कलात्मक उन्नति का, बल्कि आत्मिक विकास का भी एक सार्थक कदम बनता जा रहा है।

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