थिएटर सूने, यूट्यूब पर धूम—छत्तीसगढ़ी सिनेमा की नई उलझन!

साल 2025 के पहले तीन महीने छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। जनवरी से मार्च के बीच रिलीज़ हुई 10 फिल्मों में से एक भी सिनेमाघरों में अपनी लागत नहीं निकाल सकी। भले ही कुछ फिल्मों के गाने यूट्यूब पर मिलियन व्यूज़ तक पहुंचे हों, लेकिन दर्शकों की सिनेमाघरों से दूरी इंडस्ट्री के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।
गाने सुपरहिट, फिल्में सुपरफ्लॉप
इनमें से 3 फिल्मों — सुकवा, डोली ले के आजा, और टीना टप्पर — के गानों ने यूट्यूब पर जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की।
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‘रानी के फुदरा’: 1.9 करोड़ व्यूज़
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‘जीना हे त पीना हे’: 1.5 करोड़ व्यूज़
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‘कर ले तैं मया के चिन्हारी’: 45 लाख व्यूज़
इन आंकड़ों से साफ है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर छत्तीसगढ़ी कंटेंट को पसंद किया जा रहा है, लेकिन यह लोकप्रियता सिनेमाघरों में भीड़ में नहीं बदल पा रही।
बजट बड़ा, कमाई छोटी
कुछ फिल्मों का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन औसत रहा, लेकिन उनके निर्माण में लगा बजट इतना अधिक था कि वे आर्थिक रूप से विफल ही मानी जा रही हैं। जानकार मानते हैं कि यदि इन फिल्मों का बजट थोड़ा नियंत्रित होता, तो ये हिट फिल्मों की सूची में आ सकती थीं।
सफलता का गणित बदल रहा है
छत्तीसगढ़ी फिल्में अब केवल थिएटर तक सीमित नहीं हैं। ये मेले, यूट्यूब और ओटीटी जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी पहुंच रही हैं। परंतु थिएटर कलेक्शन अब भी 'सफलता' का मुख्य पैमाना माना जाता है। दर्शकों की बदलती आदतों को देखते हुए, प्रोड्यूसर्स को अब मल्टी-प्लेटफॉर्म रिलीज और डिजिटल रणनीति पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
ओटीटी: संकट में उम्मीद की किरण
अब जब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स गांव-गांव तक पहुंच चुके हैं, यह छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए एक नया अवसर बन सकता है। जरूरत है कंटेंट की क्वालिटी, स्क्रिप्ट की मजबूती और दर्शकों से जुड़े विषयों की।
निष्कर्ष: हिट गानों से नहीं, दर्शकों से बनती है हिट फिल्म
यूट्यूब पर मिलियन व्यूज़ भले ही वाहवाही बटोर लें, लेकिन जब तक दर्शक थिएटर की ओर रुख नहीं करेंगे, तब तक छत्तीसगढ़ी सिनेमा आर्थिक मजबूती नहीं पा सकेगा।
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